सीएम फेस पर दुविधा में क्यों फंसी बीजेपी?

मध्य प्रदेश में कांग्रेस विधायकों के बगावत के बाद सरकार बनाने में सफल रही है. इसके अलावा गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी की सीटें घट गई थीं. महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई और हरियाणा में जेजेपी के सहयोग से सरकार बनी है

Update: 2021-06-22 10:48 GMT

2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी चेहरे को आगे नहीं किया था. प्रदेश में बीजेपी ने भले ही पार्टी की कमान केशव प्रसाद मौर्य के हाथों में सौंप रखी थी, लेकिन पूरा चुनाव पीएम मोदी के नाम पर लड़ा गया था. बीजेपी को चुनाव में इसका जबरदस्त फायदा मिला और यूपी के अब तक के इतिहास में पार्टी ने सबसे ज्यादा 311 सीटें जीतीं. बाद में मुख्यमंत्री का ताज योगी आदित्यनाथ के सिर सजा तो केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा को डिप्टीसीएम बनाया गया.

अब जबकि अगले साल विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी में दिल्ली से लखनऊ तक बैठकों का दौर जारी है. हालांकि पार्टी ने अभी तक सार्वजनिक रूप से यह घोषणा नहीं की है कि 2022 के चुनाव में सीएम का चेहरा योगी आदित्यनाथ ही होंगे या फिर 2017 की तरह बिना फेस के पार्टी चुनावी मैदान में उतरेगी. सीएम फेस को लेकर बीजेपी दो धड़ों में बंटी दिखाई दे रही है. एक गुट योगी को आगे कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहा है तो दूसरा खेमा चुनाव बाद केंद्रीय नेतृत्व फैसला करेगा की बात कहकर सियासी सस्पेंस पैदा कर रहा है.

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ खुलकर सीएम योगी के कामकाज की तारीफ कर रहे हैं. स्वतंत्र देव सिंह ने हाल में ही कहा था कि उत्तर प्रदेश में चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही होंगे. यूपी में योगी आदित्यनाथ से ज्यादा परिश्रमी और ईमानदार मुख्यमंत्री कौन है?

केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा कि उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ ने बेहद शानदार काम किया है. कोविड संक्रमित होने के बाद भी वो सक्रिय थे. आइसोलेशन में रहने के दौरान भी लगातार काम करते रहे. अगले चुनाव में सीएम चेहरा पर राजनाथ ने कहा था कि सीएम योगी हैं तो दूसरा कौन होगा. उनके परिश्रम और नीयत पर सवाल नहीं किया जा सकता.

दूसरी ओर केशव प्रसाद मौर्य से लेकर स्वामी प्रसाद मौर्या और हाल ही में प्रदेश उपाध्यक्ष बने अरविंद शर्मा मानते हैं कि 2022 में सीएम फेस केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा. रविवार को बीजेपी दफ्तर में संगठन की मीटिंग में भाग लेने आए सरकार के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने योगी की तारीफ तो की लेकिन ये भी कहा कि 2022 चुनाव जीतने के बाद पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व ही यूपी में मुख्यमंत्री का चेहरा तय करेगा. उन्होंने कहा कि 2017 में भी बीजेपी ने सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया था और चुनाव नतीजे के बाद योगी को सीएम बनाया गया था. ऐसे ही 2022 में होगा.

स्वामी प्रसाद के इस बयान से पहले डिप्टीसीएम केशव मौर्य भी यह कह चुके हैं कि बीजेपी की परंपरा रही है कि केंद्रीय नेतृत्व ही मुख्यमंत्री फेस तय करता है. हम पहले केवल चुनाव जीतने पर ही फोकस कर रहे हैं और सीएम फेस का फैसला केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा. वहीं, पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले अरविंद शर्मा ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ने की बात तो कही, लेकिन पीएम मोदी को ही यूपी के चुनाव में जीत के लिए काफी बताया.

अरविंद शर्मा ने कहा कि मेरी राय है कि यूपी के लोग आज भी पीएम मोदी को उतना ही चाहते हैं, जितना 2013-14 में चाहते थे. चुनाव जीतने के लिए सिर्फ पीएम मोदी का नाम ही काफी है. उनका संरक्षण ही काफी है. हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि आपकी (स्वतंत्र देव) और सीएम योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बीजेपी को पिछले चुनाव से भी ज्यादा सीटें मिलेंगी. एके शर्मा का ये बयान ऐसे समय आया है, जब योगी को लेकर कई तबकों में सवाल उठ रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी में सीएम फेस को लेकर नेताओं के अलग-अलग बयान भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे है.

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में जनता बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का फैसला कर चुकी है. ऐसे में कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किसके चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. सीएम योगी अभी तक कोई वादा पूरा नहीं कर सके हैं. ऐसे में बीजेपी किसी को भी सीएम फेस बना दे, लेकिन अब वो चुनाव नहीं जीतने वाली है.

वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ काशी प्रसाद यादव मानते हैं कि यूपी में सीएम फेस पर बीजेपी ऐसी ही दुविधा बनाकर रखना चाहती है, जिसमें उसका अपना सियासी फायदा है. बिना किसी चेहरे को आगे किए चुनाव में उतरने से बीजेपी के तमाम नेता एकजुट होकर प्रयास करते हैं, क्योंकि बीजेपी प्रदेश की सपा और बसपा पार्टी नहीं है. बीजेपी और कांग्रेस ऐसी पार्टियां है, जहां मुख्यमंत्री बनने का मौका पार्टी के किसी भी नेता को मिल सकता है. इसीलिए बीजेपी यूपी में सीएम पद को लेकर ऐसी दुविधा को बनाए रखना चाहती है ताकि पार्टी के सभी नेता और उनके कार्यकर्ता एकजुट होकर पार्टी को जिताने में भूमिका अदा करे.

दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर श्री प्रकाश सिंह कहते हैं कि कई विकल्प खुले रखना, किसी राजनीतिक दल के लिए हमेशा अच्छा होता है. इससे नेतृत्व को चुनावी अंकगणित साधने के लिए आवश्यक गुणा-भाग करने में सहूलियत हो जाती है. उन्हें बस यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न गुट, एक-दूसरे के खिलाफ काम न करें.

दरअसल, 2014 के बाद से बीजेपी ने जिन राज्यों में मौजूदा मुख्यमंत्री को चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतरी है, उसे सियासी तौर पर कोई खास फायदा नहीं मिला है. इतना ही नहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव में बीजेपी ने सीएम फेस के साथ उतरी थी, लेकिन सभी राज्यों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है. हालांकि, मध्य प्रदेश में कांग्रेस विधायकों के बगावत के बाद सरकार बनाने में सफल रही है. इसके अलावा गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी की सीटें घट गई थीं. महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई और हरियाणा में जेजेपी के सहयोग से सरकार बनी है

वहीं, असम में बीजेपी बिना मुख्यमंत्री फेस के चुनावी मैदान में उतरी थी और अपनी सत्ता बचाए रखने में सफल रही है. हालांकि, सत्ता में वापसी के बाद बीजेपी सर्बानंद सोनेवाल की जगह हेमंत सरमा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. उत्तराखंड में बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया है, लेकिन पार्टी ने तय किया है कि 2022 के चुनाव में असम मॉडल पर यानि बिना सीएम फेस के उतरेगी. ऐसे ही यूपी को लेकर अभी कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन जिस तरह से भ्रम की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह खामोश है और उसे इसी कन्फ्यूजन में अपना राजनीतिक फायदा नजर आ रहा है.

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