कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया तो आचार्य प्रमोद कृष्णम को खो देगी!

क्या प्रमोद कृष्णम भी कांग्रेस को कर देंगे बाय बाय!;

Update: 2021-06-27 07:11 GMT
Acharya Pramod Krishnam (File Photo)

उत्तर प्रदेश में मृत प्राय पड़ी कांग्रेस को इस बार यूपी में पुनर्जन्म होने की महती जरूरत थी. लेकिन कांग्रेस का आलाकमान अभी इस बात पर गंभीर नहीं दिख रहा है. जहां यूपी में पूर्व में कांग्रेस का परम्परागत वोट रहा ब्राह्मण , मुस्लिम और दलित समीकरण पूरी तरह छिन्न भिन्न हुआ था. उसमें इस बार एक बड़ी कामयाबी मिलती नजर आ रही थी. जिसमें कांग्रेस की राष्ट्रिय महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गाँधी के राजनैतिक सलाहकार आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बड़ी महती भूमिका निभाई. 

आचार्य प्रमोद कृष्णम ने यूपी में प्रताड़ित किये जा रहे ब्राह्मण की बात बड़ी ताकत से सर्वप्रथम उठाई जिससे ब्राह्मण समाज का युवा वर्ग आचार्य के साथ पुरजोर ताकत के साथ खड़ा हो गया. चूँकि यूपी में ब्राह्मणों का वोट चौदह प्रतिशत है. इसको देखते हुए आचार्य ने ब्राह्मण वोट का एक बड़ा तबका बीजेपी से छीन लिया. उधर यूपी में नारायण दत्त तिवारी के बाद कोई ब्राह्मण चेहरा सीएम की कुर्सी पर काबिज नहीं हुआ और यह नारजगी बराबर बनी रही. कभी ब्रह्मदत्त द्विवेदी तो कभी कभी कलराज मिश्र तो लक्ष्मीकांत बाजपेयी , रमापति राम त्रिपाठी समेत कई दिग्गज केसरीनाथ त्रिपाठी समेत नामी गिरामी नेता आपसी कलह के चलते पद के नजदीक भी नहीं पहुँच पाए. 

अब इस बार युवाओं ने इस मांग को जोर देकर कहा कि इस बार ब्राह्मण चेहरा को जो आगे करेगा उसी को ब्राह्मण ज्यादा तादात में वोट करेगा. लिहाजा इस पर आचार्य प्रमोद कृष्णम का कापीराईट बन गया जब कानपूर केस के बाद ब्राह्मणों को चुन चुन कर मारा जा रहा था और सभी ब्राह्मण छत्रप देख रहे थे. आचार्य इस मामले में खुलकर बोले और ब्राह्मणों के खिलाफ चल रहे मामले को ठंडा किया. और ब्राह्मणों में जगरूकता फैलाई. लेकिन जब तक जागरूकता आगे बढती युवाओं ने कांग्रेस चेहरा को सीएम पद का उम्मीदवार बनाये जाने की बात कही. तो बीजेपी में योगी खुद में एक बड़ा चेहरा है तो वहां ब्राह्मण चेहरा आगे नहीं हो सकता जबकि समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव खुद तो बसपा में मायवती उम्मीदवार बनी हुई है ऐसे में कांग्रेस अपनी खोई हुई ताकत को आचार्य के सर पर ताज बंधकर अपने परम्परागत वोट को वापस कर सकती है. 

लेकिन कांग्रेस अभी भी आचार्य को लेकर फिक्रमंद नहीं दिख रही है जबकि कई पार्टियां आचार्य को अपने खेमें में खींचने के प्रयास में जुटी हुई है जबकि आचार्य कांग्रेस के साथ ही रहना चाहते है. चूँकि आचार्य के सामने बीजेपी के हिंदू मुस्लिम होना बहुत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा. आचार्य की पकड़ मुस्लिम वोट बेंक पर भी बड़ा प्रभाव है. ऐसे में कांग्रेस ये प्रयोग करके यूपी में अपनी पहचान बना सकती है. लेकिन कांग्रेस अभी भी ख़ामोशी अख्तियार किये हुए है. 

जबकि ब्राह्मण समाज आचार्य प्रमोद कृष्णम को प्रदेश की सीएम की कुर्सी पर देखना चाहता है. लेकिन कांगेस पता नहीं बंगाल की तरह यूपी में अपनी बची बाकी साथ सीटों पर भी जित दर्ज कर पाएगी या नहीं यह कहना मुश्किल है . किंतु इतना जरुर तय हा अगर समय रहते कांग्रेस चेती नहीं तो अपने एक बड़े नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम को जरुर खो देगी. 

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