भईया, जिंदगी में अगर जेल मिले .. तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसी..

जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है। मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। अगर वे बलिदान न देते, तो कश्मीर हमारा न होता।

Update: 2023-10-12 08:26 GMT

मनीष सिंह 

जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है। इसलिए बाबू भईया, वो डल झील भी हमारी है, उसके किनारे वह पॉश बंगला भी। जिसमे उन्हें कैद रखा गया।

श्यामा बाबू बचपन मे कांग्रेसी थे। 5 साल कांग्रेसी विधायक रहे। फिर सुभाषचन्द्र की नाराजगी से बंगाल में कांग्रेस का वही हाल हो गया, जो आज यूपी में है।

मगर श्यामा इसके पहले ही कांग्रेस छोड़ चुके थे। क्योकि सुभाष उनको फूटी आंख देखना पसंद न करते। गप है कि एक बार उन्होंने श्यामा अंकिल को कलकत्ता की सड़कों पर दौड़ा दिया था।

यह भी गप है कि श्यामा जी तेजी से भागकर बच गए। मगर कुछ कहते है कि नही, उतना तेज नही भाग पाये। क्या हुआ, मुझे ठीक से नही पता।

इतना पक्का पता है कि उन्होंने अपनी कृषक प्रजा मजदूर पार्टी बनाई। उससे जीतकर विधायक बने।

कांग्रेस पिछड़ गई थी। तो मुस्लिम लीग-हिन्दू महासभा ने हिन्दू मुस्लिम, सत्ता में भाई भाई का नारा लगाकर सरकार बनाये।

इसमे श्यामा अंकिल भी शामिल हुए। मुख्यमंत्री फजलुल हक ने खाद्य और आपूर्ति मंत्री बनाया।

श्यामा जी काबिल प्रशासक थे। बंगाल में अकाल पड़ा। चार लाख मौतें हो सकती थी।

मगर उनके कुशल प्रबंधन से मात्र 3,99,999 ही मरे। श्यामा स्वयं जीवित रहे। आखिर अकाल उनका क्या ही बिगाड़ पाता।

वो महाकाली के भक्त जो थे।

बहरहाल उन्होंने हिन्दू महासभा में अपनी पार्टी विलय कर दी। इसका फायदा हिन्दू महासभा को मिला।

सम्विधान सभा मे जो 01 सीट हिन्दू महासभा को मिली, वह श्यामा अंकिल ने अपने दम पे जीती। तो श्यामा अंकिल का पुराना अनुभव देखकर नेहरू ने केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री बनाया।

बदकिस्मती से इस बार अकाल नही आया, तो उन्हें जौहर दिखाने का खास मौका न मिला।

लेकिन वे कश्मीर के मुद्दे पर, 370 के मुद्दे पर और तमाम मुद्दे पर अच्छे बच्चे की तरह सरकार के समर्थन में खड़े रहे।

इस्तीफा दिया, तो लियाकत-नेहरू पैक्ट के विरोध में..

पैक्ट वही था, जो आज का CAA है। याने उधर से जो इधर हिन्दू शरणार्थी आयें, उन्हें फटाफट नागरिकता दो। और यहां से जो वहां, जाएं, उन्हें पाकिस्तान फटाफट नागरिकता दे।

शरणार्थी अपनी सम्पत्ति के निपटान के लिए आ-जा सकें। बलपूर्वक मतांतरण रोकने और दोनो देशों में अल्पसंख्यक आयोग बनाने में सहमति हुई।

इसमे वो CAA वाले प्रावधान पे श्यामा असहमत थे। इस्तीफा दे दिया। ये अलग बात की उनके पट्ठों ने 70 साल बाद पलटी मार ली। CAA लगा दिया।

तो मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद राजनीति नये सिरे से संवारनी थी। हिन्दू महासभा की तो गांधी हत्या के बाद एकदम्मे थू थू हो रखी थी।

अंकिल ने उसका शटर गिराकर नई दुकान खोली, जिसे जनसंघ कहते थे। उस दुकान से उन्होंने कश्मीर का विरोध बेचना तय किया। उन्ही 370 पे विरोध, जिसको वे सरकार में रहते हुए करते हुए लागू किए थे।

बहरहाल, तब 370 अपने शबाब पे था। याने रक्षा, विदेश, संचार छोड़ राजा साहब पूर्णतया स्वतंत्र थे। याने किसी किसी विरोधी की कम्बल कुटान के लिए भी स्वतंत्र थे।

तो श्यामा अंकिल 370 का विरोध करने का रहे थे। मने राजा की आजादी का विरोध करने जा रहे थे।

तो राजा ने उन्हें गिरफ्तार करना ही था।

और पीटा नही। वो संघी गप है। बाइज्जत उन्हें डल झील के किनारे एक बंगले में कैदी बनाकर रखा। फुल फैसलिटी दी। चाय, कॉफी, सेवक.. पता है क्यो??

क्योकि श्यामा क्रिमिनल नही थे। माननीय पॉलीटकल प्रिजनर थे। जब आडवाणी गिरफ्तार हुए, तो उन्हें हेलीकॉप्टर से ले जाया गया। स्टेट गेस्ट हाउस में रखा गया। पता है क्यों??

क्योकि आडवाणी क्रिमिनल नही थे, माननीय पोलिटीकल प्रिजनर थे। गांधी को आगा खां पैलेस में कैद किया गया। नेहरू को अंडमान नही भेजा गया। पता है क्यो??

क्योकि नेहरू और गांधी गांधी, टुच्चे क्रिमिनल नही थे। वे माननीय पॉलीटीकल प्रिजनर थे।

लेकिन सावरकर को अंडमान की जेल भेजा गया। पता है क्यूं???

प्लीज । जवाब में टुच्चा न लिखें। हां क्रिमिनल ऑफेंस में जरूर गये थे। मर्डर केस था।

एक कलेक्टर, IAS अफसर ( तब ICS) के मर्डर का केस था। सावरकर का शिप से कूदकर भागना भी वहां रखने का कारण बना।

तो दोबारा मत पूछना की नेहरू- गांधी को अंडमान क्यो नही भेजा गया।

दोस्तों, बंगले में जेल हो, या जेल में बंगला। छोटा जीव का आदमी, जेल के नाम से घबरा जाता है। श्यामा अंकिल को हार्ट अटैक आ गया। चल बसे।

नमन, श्रद्धांजलि।

जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है। मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। अगर वे बलिदान न देते, तो कश्मीर हमारा न होता।

बाकी तो मन की बात ये है, कि बंगला देखकर यही लगता है। भईया, कभी जेल हो ..

तो श्यामा अंकिल जैसी..

वरना ना हो। 

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