तेजस्वी का मामला, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे

Update: 2025-08-04 08:17 GMT

तेजस्वी के पास दो ईपीआईसी नंबर होने का मामला दिलचस्प है। चुनाव आयोग का पुराना नियम है कि व्यक्ति का नाम (देश भर में) एक ही जगह होगा। तेजस्वी के पास दो थे तो चुनाव आयोग को पहले बताना था। पर हुआ उल्टा है। तेजस्वी ने कहा कि उनके ईपीआईसी नंबर से उनका नाम गायब है तो चुनाव आयोग ने कह दिया कि इस ईपीआईसी नंबर से है। उनके दो नंबर हैं। मतदाता सूची में दो जगह नाम होना गलत (या गैर कानूनी) है। अगर किसी कारण से उनके पास दो नंबर होते तो वे खुद नहीं बताते या दोनों की जांच करते। उन्होंने एक की ही जांच करके कह दिया कि उनका नाम नहीं है तो जाहिर है, उन्हें दूसरे का पता नहीं होगा और पता होता तो वे ऐसा नहीं करते। या उसकी भी जांच करते। कोई लल्लू और पप्पू भी ऐसा नहीं करेगा कि गैर कानूनी रूप से उसके दो ईपीआईसी नंबर होंगे तो वह एक की ही बात करके नंबर देने वाले को चुनौती देगा या कठघड़े में खड़ा करेगा? वह भी ऐसे समय में इस तरह? इसलिये, दूसरा ईपीआईसी गड़बड़ है और एसआईआर में इसे पकड़ जाना चाहिये था। नहीं पकड़ा गया यह बड़ा मामला है। चुनाव आयोग का बाद में खुलासा करना बेमतलब है।

चुनाव आयोग को अगर अनुमान होता तो वह पहले ही बताता। इसलिये, जाहिर है, चुनाव आयोग या तो अनजान था या इस सूचना का खुलासा नहीं करके सही समय का इंतजार कर रहा था। दोनों अनुचित और असामान्य है। निश्चित रूप से चुनाव आयोग तेजस्वी के खुलासे के बाद नए नंबर से नई जगह नाम डाल सकता है। हालांकि यह आवेदन से हुआ हो तो भी गलत ही होगा और इसके बिना गलत हो नहीं सकता। क्योंकि चुनाव आयोग मेरा नाम पांच जगह लिख दे तो मैं कैसे दोषी हो गया? भले उसने ऐसा नहीं किया हो। पर तेजस्वी दो नंबर जानते होते तो ऐसा नहीं करते। ऐसे में चुनाव आयोग की कार्रवाई खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे लगती है। और अगर तेजस्वी गलत हो सकते हैं तो चुनाव आयोग भी दूध का धुला नहीं है। फिर भी तेजस्वी से कारण बताने के लिए कहना बाकी लोगों को धमकाना है। और जब “अजीत अंजुम नामक यू ट्यूबर” पर एफआईआर का असर नहीं हुआ तो तेजस्वी यादव पर क्या होना है। लेकिन वह अलग मामला है।

अब आते हैं ईपीआईसी नंबर पर - यह नया है और आम आदमी या वोटर के लिए पहली बार चर्चा में तब आया जब पश्चिम बंगाल में हरियाणा के एपिक नंबर मिले। निश्चित रूप से वह गड़बड़ है और उसे स्पष्ट नहीं किया गया है। पुराने कार्ड में ईपीआईसी बता कर कोई नंबर नहीं है। इस बार लोकसभा चुनाव के लिए मेरे पास कोई नया वोटर कार्ड नहीं था और पुराने से ही वोट दिया है। इसमें एक नंबर जरूर है पर वह अनूठा नंबर है ऐसा मैं पश्चिम बंगाल वाले मामले से पहले नहीं जानता था और दिल्ली के बाद उत्तर प्रदेश में मेरा नंबर बदल गया था और यह वैसे ही था जैसे फोन नंबर के साथ एसटीडी कोड भी बदल गया। दिल्ली सीमा पर हूं इसलिये बेतार फोन आये तो दिल्ली का नंबर यहां काम करता था और मैं उसी को चलाता रहा पर बाद में फोन कंपनी वालों ने उसे यह कहकर बंद कर दिया कि दिल्ली का ही पता चाहिये। मोबाइल के मामले में पूरा एनसीआर एक था इसलिए मोबाइल नंबर नहीं बदला लेकिन मेरा बिहार का नंबर (जमशेदपुर तब बिहार में ही था) अलग था। रोमिंग बहुत बाद में शुरू हुआ।

इस लिये वोटर आईकार्ड का एपिक नंबर पैन नंबर की तरह परमानेंट अकाउंट नबंर नहीं है। पहले के लैंडलाइन नंबर की तरह है (या होना चाहिये) जो मोहल्ला बंदलने पर भी बदल जाता था। पासपोर्ट भी नया बने तो नंबर बदल जायेगा और नवीनकरण नया नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर वोटर आईकार्ड की व्यवस्था भारत में अभी नहीं है और एक देश एक चुनाव से लेकर तमाम नौटंकियों में एक देश एक वोटर, एक वोटर कार्ड अभी नहीं है। हालांकि देश के किसी भी हिस्से का वोटर कहीं से चुनाव लड़ सकता है (भले कभी न जीते)। बिहार विधान परिषद चुनाव के समय मैंने जरूर कहीं पढ़ा था सदस्य बनने के लिए बिहार का वोटर होना जरूरी है। कुल मिलाकर, इस मामले में नीतियां स्पष्ट नहीं हैं और समय के अनुसार इसमें सुधार व विकास के लिए सोचा भी नहीं गया है। जो है उसके दुरुपयोग और उससे लाभ उठाने के मामले हैं। उसकी शिकायत के मद्देनजर फंसता हुआ चुनाव आयोग बचने के लिए जो भी करेगा दिलचस्प और नजर रखने लायक होगा।

आधार जब बना तब ऐसा हो सकता था संभव है राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया गया हो और एसआईआर जैसे अभियान में देश के करोड़ों रुपये फूंके जा रहे हैं। दूसरी ओर चुनाव, मतदान, आयकर, पहचान, वाहन चलाने सबके लिए अब अलग कार्ड की जरूरत ही नहीं है सब एक होना चाहिये पर वह भी अलग मुद्दा है।



 


तस्वीर मेरे दो वोटर आईकार्ड दोनों तरफ - दोनों में तमाम अंतर हैं। अगर पहले वाले (दिल्ली के) की गुणवत्ता बेहतर है तो उसमें 1.1.1994 को आयु लिखा है। दूसरा 2.1.2012 को जारी हुआ है पर उसमें जन्म की तारीख लिखी है और वह भी गलत। दोनों के नंबर बता रहे हैं कि एक जैसे नहीं हैं तारीख तो है ही नहीं, सन भी गलत है। दिल्ली का नंबर पहले का होने के बाद भी व्यवस्थित लगता है। यह सब अलग मुद्दा है। यह सब सुनना-देखना चाहें तो लिंक कमेंट बॉक्स में है।

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