जातीय अहंकार एक तरह की मानसिक बीमारी है

जातीय वर्चस्व के परिणामस्वरूप हासिल आदतों-सुविधाओं-नौकरियों-कुशलताओं को अपनी प्रतिभा कतई न समझिए।

Update: 2021-07-25 07:32 GMT

रंगनाथ सिंह 

जातीय अहंकार एक तरह की मानसिक बीमारी है। खासकर तब जब आपका जातीय इतिहास वर्चस्व और शोषण का रहा हो। ठाकुर-बाभन-लाला-बनिया इत्यादि समाज से आने वाले नौजवानों को मेरा सुझाव है कि खोखले जातीय अहंकार से बचिए, सभ्य बनिए और ज्ञान-विज्ञान अर्जन पर ध्यान दीजिए। जातीय वर्चस्व के परिणामस्वरूप हासिल आदतों-सुविधाओं-नौकरियों-कुशलताओं को अपनी प्रतिभा कतई न समझिए।

भारत की सदियों की गुलामी की जितने विचारकों ने व्याख्या की है उनमें से ज्यादातर ने माना है कि हमारी गुलामी की एक बड़ी वजह यह थी कि हम हजारों जातियों में बँटे हुए थे। सामुदायिक विभाजन हर समाज में दिखते हैं लेकिन हमारे जितने छोटे-छोटे टुकड़े शायद ही किसी समाज में हुए होंगे। यह विभाजनकारी सोच पहले इंसानों को जाति में बाँटती है। फिर जाति को गोत्र में बाँटती है। फिर गोत्र को भी कुल-खानदान और न जाने क्या-क्या में बाँटती गयी है। भारतीय समाज की इस विभाजनकारी मनोवृत्ति को देखकर शर्मिंदगी होती है।

जातीय अहंकार और धार्मिक पोंगापन्थ-रूढ़िवादिता भारत के विकास में सबसे बड़े बाधक हैं। हमारे देश को आज गीता-वेद-कुरान-बाइबल के विद्वानों से ज्यादा ज्ञान-विज्ञान-तकनीक की जरूरत है। सारे धार्मिक ग्रन्थ मौजूद रहे लेकिन हम गुलाम होते गये क्योंकि हमें गुलाम बनाने वाले ज्ञान-विज्ञान-तकनीक में हमसे आगे थे। यहूदियों की छोटी सी कौम है। उन्होंने बहुत दमन और उत्पीड़न सहा। एकबारगी लगा कि उनकी कौम पूरी तरह मिट जाएगी। अपने उत्थान के लिए उन्होंने ज्ञान-विज्ञान-तकनीक का रास्ता अपनाया और आज पूरी दुनिया के समकालीन ज्ञान भण्डार में उनका सबसे बड़ा हिस्सा है।। जापानियों पर अमेरिका ने दो परमाणु बम गिराकर उनके दो प्रमुख शहर नष्ट कर दिये। जापानियों ने ज्ञान-विज्ञान-तकनीक का रास्ता अपनाया और छोटा सा देश विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में एक हो गया। पिछले एक हजार साल का इतिहास आप देख लीजिए जिसका ज्ञान-विज्ञान-तकनीक पर वर्चस्व रहा है उसी का दुनिया पर सिक्का चला है।

हम जाति या धर्म के नाम पर चाहे जितने खोखले अहंकार पाल लें सच यही है कि हम तीसरी दुनिया के गरीब देश हैं। जाति या धर्म या नस्ल जैसी चीजें, जो आपको जन्म के साथ फ्री में मिल जाती हैं उनपर अहंकार करना ज्यादातर मौकों पर वास्तविक उपलब्धियों के अभाव का लक्षण होता है। ऐसे अहंकारियों की हालत पागलखाने के उन पागलों जैसी होती जिनके दिमाग में एक ही टेप बजता रहता है कि मैं प्रधानमंत्री हूँ और वो जोर जोर से यही बात चिल्लाते रहते हैं। पूरी दुनिया उनपर हँसती है लेकिन पागल को यह बात नहीं समझ आती कि उसने अपने दिमागी फितूर को वास्तविक सच मान लिया है।

रंगनाथ सिंह के फेसबुक से साभार 


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