अंधों के शहर में आइना बेचना बड़ा ही मूर्खतापूर्ण कारोबार है और इस लिहाज से सच बोलने वालों को दुनिया मूर्ख ही मानती आई है!

Update: 2021-06-16 11:52 GMT

नरेंद्र मोदी अथवा भाजपा के लिए भावुक होकर अपने ही परिजनों, नातेदारों, मित्रों, जानकारों अथवा अंजान लोगों से लड़- मरने को तैयार लोगों के लिए पार्थ श्रीवास्तव की आत्महत्या एक सबक होनी चाहिए. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोशल मीडिया टीम यानी आईटी सेल में काम कर रहे 20-22 साल के पार्थ श्रीवास्तव ने हाल ही में आत्महत्या कर ली थी.

उसकी मौत पर उसके परिजनों के अलावा, सोशल मीडिया और विपक्ष के कुछ लोगों ने दुख जताते हुए जांच और कार्यवाही की मांग की लेकिन न तो मुख्यमंत्री और ही भाजपा के किसी नेता ने उसकी मौत पर संवेदना जताई...न जांच के लिए कहा और न ही उसके परिजनों की आर्थिक मदद की बात उठाई.

यहां तक कि सोशल मीडिया के जरिए पड़े बहुत दबाव के बाद FIR दर्ज हुई मगर गिरफ्तारी तब भी नहीं हुई. जिन योगी आदित्यनाथ और भाजपा के लिए पार्थ ने जीते जी न जाने कितने लोगों से सोशल मीडिया पर या निजी तौर पर खुन्नस मोल ली होगी, उनको उसके इतनी कम उम्र में मर जाने से रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा.

मुझे याद है कि 2017 में यूपी चुनाव में आईटी सेल का एक युवा मुझसे मोदी की आलोचना की एक पोस्ट लिखने पर किस तरह लड़ने- मरने को तैयार हो गया था. शुरू में तो मैंने उसे नजरंदाज किया मगर बाद में वह भाजपा और सत्ता में अपनी ताकत का हवाला देकर मुझे धमकाने लगा तो मैंने उसका प्रोफ़ाइल देखा.

प्रोफाइल के मुताबिक, लगभग 20-22 साल का वह युवक लखनऊ के एक नजदीकी जिले की भाजपा की आईटी सेल का हिस्सा था. मैंने उससे कहा कि यह जो तुम भाजपा और मोदी के लिए लड़ने- मरने को तैयार हो तो इसका अर्थ यह है कि तुम्हें यह गुमान है कि तुम मोदी और भाजपा के लिए बहुत अहम हो.

मैंने उसे बहुत समझाया कि यह राजनीति है और इसमें किसी भी दल या नेता के लिए भावुक होकर निजी झगड़े नहीं किए जाते. लेकिन वह अपनी टोन बदलने को तैयार ही नहीं था. फिर थकहार कर मैंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया. मुझे अब उसका नाम तो याद नहीं मगर यह याद है कि वह कोई श्रीवास्तव ही था. वह जहां भी हो, स्वस्थ, प्रसन्न और दीर्घायु रहे लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठकर अगर पार्थ श्रीवास्तव भाजपा के लोगों के लिए कोई अहमियत नहीं रखता तो किसी छोटे- मोटे जिले की आईटी सेल की टीम में काम करने वाले युवा को जरूर अपनी हैसियत का अंदाजा लग जाना चाहिए.

पत्रकारिता में एक लंबा अनुभव रखने के कारण मुझे तो पता है कि किसी भी नेता, दल या राजनीतिक विचारधारा के प्रति भावुक होना गलत नहीं है मगर मूर्खता की हद तक जाकर उस भावुकता को निजी झगड़ों में बदलना गलत है. मेरे बचपन के मित्र या कई नातेदार, परिजन अथवा जानकार भी अनजान लोगों की ही तरह मोदी- भाजपा की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते और कई बार खीझ में मुझ पर निजी कटु टिप्पणियां करने लगते हैं.

अमूमन तो मैं उनका जवाब देता नहीं हूं मगर जब वह बार बार आकर मेरी पोस्ट पर अनर्गल प्रलाप या मूर्खतापूर्ण बातें करने लगते हैं तो कभी कभार उनकी कुचर्चा में अपनी बातें रखने की कोशिश करता हूं. फिर भी वह नहीं मानते और अपनी भावुकता से वह बरसों पुराने संबंध को ताक पर रखकर मुझसे झगड़ा करने पर आमादा होने लगते हैं तो बजाय लड़ाई को और बढ़ाने के मैं उन्हें ब्लॉक करके खुद ही संबंध विच्छेद कर देता हूं. क्योंकि मूर्ख को मित्र या शत्रु बनाने से सिवाय पछतावे के कुछ हासिल नहीं होता.

मेरा यह मानना है कि यदि आपको मोदी या भाजपा की आलोचना इतनी बुरी लग रही है तो आप अपनी वॉल पर जाकर मोदी और भाजपा की आरती उतारो... यदि मेरी किसी पोस्ट के तथ्य या तर्क से आपत्ति है तो मेरी वॉल पर आकर भी मेरी उस पोस्ट को गलत साबित करो... लेकिन शालीनता और समझदारी के साथ. भावुक होकर केवल यही नारा लगाना है कि मोदी और भाजपा की आलोचना जो करेगा, वह देशद्रोही है तो अपनी वॉल पर जाकर लगाओ. वहां आपके जैसे कुछ और भावुक लोग आपको इसके लिए वाहवाही देंगे और आप उसी में खुश रहो.

बहरहाल, अंधों के शहर में आइना बेचना बड़ा ही मूर्खतापूर्ण कारोबार है और इस लिहाज से सच बोलने वालों को दुनिया मूर्ख ही मानती आई है. मगर जिन्हें इसी कारोबार में अच्छा लगता हो, उनका भी कुछ नहीं किया जा सकता.

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