World Environment Day 5th June 2020 : हमारी परंपराएं और पर्यावरण

World Environment Day ,विश्व पर्यावरण दिवस

Update: 2020-06-05 04:50 GMT

हमारी पृथ्वी और उसके पर्यावरण की चिंता भारतीय संस्कृति की परंपरागत सोच रही है। प्राचीन भारत में पर्यावरण को बिगाड़ने वाले बड़े शहर और कारखाने तो नहीं थे, लेकिन बढ़ती आबादी के साथ कृषि योग्य जमीन तैयार करने के लिए जंगल और वृक्ष तो कटने ही लगे थे। वृक्षों की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने देवताओं में त्रिदेव के समानांतर पर्यावरण पर सबसे सकारात्मक प्रभाव डालने वाले तीन वृक्षों की त्रिमूर्ति तैयार की और उन्हें काटना वर्जित कर दिया। ये तीन वृक्ष हैं - पीपल, बरगद और नीम। पीपल को ब्रह्म देव का, बरगद को शिव का और नीम को देवी दुर्गा का आवास बताकर उन्हें पूजनीय बनाया। औषधीय गुणों के कारण आंवले और शमी के वृक्ष और तुलसी के पौधे को पूज्य घोषित किया। जीवनदायिनी नदियों को देवी और मां तथा जलाशयों को देवताओं की क्रीड़ा-भूमि बताकर उनकी निर्मलता की रक्षा के प्रयास हुए। सिंह, हाथी, सांप, गाय, बैल, घोड़ों, मछलियों, कछुओं सहित पशुओं की कई प्रजातियों को देवताओं का अवतार, वाहन या प्रिय बताकर उनके साथ हमारे सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाने की चेष्टाएं हुईं। पक्षी तो हमेशा से ही पर्यावरण के बैरोमीटर रहे हैं। जहां प्रकृति का सौंदर्य होता है, पक्षियों के गीत वहीं गूंजते हैं। पक्षी जिस जगह से दूरी बना लेते हैं, उसे अपवित्र और रहने लायक नहीं माना जाता। हमारी आदिवासी परंपराओं में मनुष्य और पक्षियों का सनातन रिश्ता आज भी क़ायम है। वहां जब तक पक्षियों का कलरव नहीं गूंजे, घर में किसी धार्मिक अनुष्ठान का आरंभ नहीं होता।

हमारी संस्कृति में देवों में प्रथम पूज्य गणेश की कल्पना प्रकृति और पर्यावरण के रूपक की तरह की गई है। गणेश का मस्तक हाथी का है। चूहे उनके वाहन हैं। बैल नंदी उनका मित्र और अभिभावक। मोर और सांप उनके परिवार के सदस्य। पर्वत उनका आवास है और वन क्रीड़ा-स्थल। उन्हें गढ़ने में नदी गंगा की भूमिका रही थी। गणेश का रंग हरा प्रकृति का और लाल शक्ति का प्रतीक है। महंगी पूजन सामग्रियों से नहीं, इक्कीस पेड़-पौधों की पत्तियों से उनकी पूजा होती है। जबतक इक्कीस दूबों की मौली समर्पित न की जाय, उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। कहा गया कि आम, पीपल और नीम के पत्तों वाली गणेश की आकृति प्रवेश द्वार पर लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण का महत्व समझा था और लोगों को उसके प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से असंख्य मिथक और प्रतीक गढ़े। कालांतर में वे मिथक और प्रतीक हमारे आराध्य हो गए और उनके पीछे छुपे पृथ्वी और पर्यावरण को संरक्षित करने के उद्देश्य पीछे छूट गए। अपनी परंपराओं की अधकचरी समझ के कारण हमारी पृथ्वी और उसका पर्यावरण आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। सभी मित्रों को विश्व पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं, हमारी संस्कृति में पृथ्वी और पर्यावरण के महत्व को रेखांकित करती इस वैदिक ऋचाके साथ !

यह हमारी पृथ्वी ही स्वर्ग है

यही अंतरिक्ष है

यही देव, यही पंचजन

यही हमें पैदा करने वाली मां

यही उत्पादक पिता

यही उत्पन्न हुई संतान है

जो कुछ उत्पन्न हुआ है

जो कुछ उत्पन्न हो रहा है

जो उत्पन्न कर रहा है

वह सब अदिति पृथ्वी ही है

इस पृथ्वी का हम नमन करते हैं

और आवाहन करते हैं कि

वह हमें सदा शरण में रखें

हमारी रक्षा करें

और हमें सुख प्रदान करें !

(अथर्ववेद 7/6) #विश्वपर्यावरणदिवस #WorldEnvironmentDay

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