मऊ के हलधरपुर से एक तीखी रिपोर्ट----- जिसे पढकर क्या अखिलेश और राजभर की नीद उड़ जायेगी या बीजेपी सोचने पर मजबूर होगी!

Update: 2021-10-28 17:57 GMT

सुबह के 10 बज रहें थें हम पहुँच चुके थें वहां जहां सुभासपा अपना 19वें स्थापना दिवस पर महापंचायत रैली आयोजित की थी.जिसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी शिरकत करने वाले थें.जिसमें शामिल होने के लिए पूर्वांचल के लगभग सभी जिलों से लोग लगातार कार्यक्रम स्थल पर भीड़ की शक्ल में पीली टोपी और सुभासपा के झंडे के साथ बढ़ते आ रहे थें। जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं औऱ युवाओं की थी. राष्ट्रीय सुहेलदेव सेना (आर एस एस) के वालेंटियर पीले टीशर्ट लोवर पहने आने वाले लोगों को यथास्थान बैठा रहे थें.लगभग तीस हजार कुर्सियां लगी हुईं थी जो लगभग 11बजते बजते भर गई थी.फिर भी लगातार हुजूम आ रहा था.मंच के ठीक सामने मीडिया के लोग कैमरे के साथ डंटे हुए थें कुछ लाईव कर रहें थें.ओमप्रकाश अखिलेश के आने में घण्टे भर की देरी थी सो हम निकल लिये कार्यक्रम स्थल के ठीक पीछे स्थित ढोलवन गांव में ताकि जान सकें कि रैली को लेकर वहां के लोगों की क्या सोच है.वहां के लोगों के क्या हाल हालात हैं.


मंच के पीछे होते हुए धान के खेतों के बीच पगडंडियों से होकर हम गांव में पहुँचे तो मड़ई के छाजन के नीचे बनियान पहने मिल गयें जीवधन गिरी. जब उनसे अपना परिचय देते हुए ओमप्रकाश की रैली के बारे में पूछा गया की आप जायेंगे की नहीं तो उनका कहना था जायेंगे जरूर,मगर वोट मोदी जी(भाजपा) को ही देंगे.


ऐसा क्यों...?इस सवाल पर वह कहते हैं कि मोदीजी ने पांच किलो राशन दिया है.वह अच्छे हैं.पास ही खड़े उनके परिवार के एक व्यक्ति जो सुभासपा वालेंटियर वाली ड्रेस में थें.वह भी बोल पड़ें कि हां मोदीजी को वोट देंगे. जब सवाल किया कि आप तो सुहेलदेव वाली ड्रेस पहने हैं. और मोदीजी को वोट देने की कह रहे हैं तो वह तपाक से कहते हैं.बाहर की मत देखिये मोदीजी अंदर हैं


इस दरम्यान उनकी पड़ोसी आ गयी सावित्री राजभर. येs साहेब हमहुँ मोदीय जी के वोट देब. तनी हमरो घरवा देख लेहीं आप. हमने सोचा कमाल है मोदीजी के यहां बहुत से दीवाने हैं. हम सावित्री के पीछे हो लियें. वह कुछ भुनभुना भी रही थीं. चंद कदमों के फासले पर उनके घर पहुँचे तो वहां घर के नाम पर छप्पर छाजन दो छोटे छोटे कमरे का कच्चा मकान था.जिसमें वह अपने तीन बच्चों औऱ बूढ़ी सास के साथ जीवन यापन करती हैं. सावित्री के पति गूंगे बहरे हैं.वह काम करने में असमर्थ हैं.जब सावित्री से उनके आजीविका के लिए पूछा तो वह अपनी टिन के दरवाजे में बंद अपनी छोटी सी दुकान है दिखाती हैं.जिसमें बमुश्किल हजार रुपये का चिप्स कुरकुरे नमकीन बिस्किट शैम्पू तम्बाकू भरा है.वह बताती हैं कि इससे वह मुश्किल से रोज तीस से पचास रुपये कमा पाती हैं.वह मायूस होकर कहती हैं, साहेब बहुत ग़रीबी हव लईकन के पढ़ा ना पावत हई.जब पूछा कि सरकारी सुविधा तो मिलती होगी न...? तो इस पर वह फट पड़ती हैं,कहती हैं. साहेब मोदीजी के हम मेहना(तंज ताना) मारत रहे हs हमहन के ई सरकार में कुछ ना मिलल हव.हमहन काहे ओनके वोट देब. फिर वह कहती हैं आवा साहेब आउर लोगन के दशा देखाईं.हम उनके साथ आगे बढ़ें तो सकरें रास्ते पर टूटी बजबजाती नालियों के बीच वह दो पक्के मकानों को उंगलियों से दिखाती हुई बोलीं उ देखा साहेब ई दुन्नो मकान अखलेश यादो के सरकार में लोहिया अवास बनल हव.जब तक दूसरे के अवास मिलत तब तक सरकरव चल गयल.जब हमने कहा कि मोदीजी भी तो प्रधानमंत्री आवास दे रहे हैं. तो वह मुँह बनाकर कहती हैं.हमने के त कुच्छो ना मिलल त हम का जानी.अब अखलेश अइहन(अखिलेश मुख्यमंत्री बनेंगे) तब्ब हमहन के कुछ मिली.


आगे बढ़े तब तक एक बूढ़ी काकी पीछे से येs साहेब हमरो नमवा लिख लाsहमरो कुच्छो ना मिलल हव. उन्हें लगा कि हम सर्वे कर रहे हैं.जो सरकार से (आवास आनाज) लाभ दिला देंगे.हमने कहा चाची आप लोग साहब मत कहा तोरे लईका जइसन हई.हम पत्रकार हई तहार बात सरकार तक पहुँचा देब. मगर वह पीछे पीछे लगीं रहीं. ये साहेब हमरे मलिकार क नमवा लिख लेईं (गावं में औरतें पति को मलिकार और पति अपने पत्नी को मलकीन कहते हैं).हमने उनका मन रखने के लिए उनके पति का नाम पूछा तो वह नाम बताने की बजाय अपना हाथ आगे कर देती हैं. जिसपर गोदना गोदकर राजेन्द्र लिखा था.


जिधर जिधर गयें गावं के अन्य घरों की हालत कमोबेश सावित्री के जैसी ही थीं सबके पास कच्चे मकान वह भी एकदम ढहने की हालत में कईयों के आधे ढहे हुये.अधिकतर मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोग थें उस गावं में. एक बूढ़ी दादी चारपाई पर बैठी हुई मिलीं.उन्हें भी लगा कि मैं सरकार की तरफ से सर्वे करने आया हूँ.वह देखते ही हाथ जोड़कर रोने लगीं.बचवा सरकार से कुछो दियाय दा. लोग बतायें की इनकी लड़की के मृत्यु हो जाने के बाद अपनी चार नातिनो को पाल रही हैं. हम गावं से निकलने की सोच रहे थें तबसे लालमुनि झट से पीछे हो लीं. ये साहेब हमरे चार गो लईकी हइन सबके त कच्चा मकानों हव हम मड़ई में चार सयान सयान लईकीन के साथे हई.चारो तरफ से मड़ई खुलल हव. डेराईला की कुछ हो हवा गयल तब का करब.हमरो घर बनवा देता साहेब.लालमुनि की आँखों में बेबसी औऱ याचना थी. मगर हम कर भी क्या सकते थें. उनमें से बहुतों की हालत देखकर ऐसा लग रहा था कि पास पैसा होता तो उन सब की पूरी तो नहीं मगर कुछ समस्याओं का समाधान करके ही वापस आता.


मैं गावं से बोझिल कदमों से कार्यक्रम स्थल की तरफ बढ़ रहा था.और लालमुनि सावित्री जैसों की बेबस लाचार जिंदगी आँखों के कोरों को तर कर रहीं थीं.

विनय मौर्या।

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