सपा ने घोसी सीट पर उपचुनाव में सुधाकर सिंह को बनाया प्रत्याशी

SP nominated Sudhakar Singh in the by-election on Ghosi seat

Update: 2023-08-13 13:24 GMT

समाजवादी पार्टी ने मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर सुधाकर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। घोसी विधानसभा उपचुनाव के लिए पांच सितंबर को मतदान होगा। सपा विधायक रहे दारा सिंह चौहान के इस्तीफे से खाली हुई मऊ जिले की विधानसभा सीट घोसी के लिए सपा ने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है।

सपा ने सुधाकर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। दारा सिंह चौहान सपा विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे। कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें यूपी में मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। विधानसभा सीट के रिक्त घोषित होने के बाद इस पर उपचुनाव की घोषणा कर दी गई थी। घोसी सीट पर पांच सितंबर को वोटिंग होगी और परिणाम आठ सितंबर को आएगा।

रोचक होगी लड़ाई

सुधाकर सिंह पहले भी सपा से विधायक रह चुके हैं। बीजेपी ने अभी अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। इस बात की पूरी संभावना जताई जा रही है कि वह सपा छोड़ने वाले दारा सिंह चौहान को ही अपना प्रत्याशी बनाए। ऐसे में यह लड़ाई रोचक तो होगी ही साथ ही दोनों तरफ से इसमें प्रतिष्ठा भी जुड़ी होगी।

कौन हैं सुधाकर सिंह

समाजवादी पार्टी की तरफ से घोसी सीट पर प्रत्याशी घोषित किए गए सुधाकर सिंह घोसी से पहले भी विधायक रह चुके हैं। एमए एलएलबी कर चुके सुधाकर सिंह की गिनती सपा के वरिष्ठ नेताओं में होती है। सुधाकर सिंह इससे पहले 1996 में नत्थूपुर विधानसभा सीट से विधायक बने थे। 2012 में परिसन के बाद नत्थूपुर सीट घोसी के नाम से जानी जाने लगी। इस चुनाव में भी सुधाकर सिंह को जीत मिली और विधानसभा पहुंचे। 2017 एक बार फिर सपा ने सुधाकर सिंह को टिकट दिया लेकिन वह भाजपा के फागू चैहान से चुनाव हार गए।

फागू चौहान के बिहार का राज्यपाल मनोनित होने पर 2020 में भी उपचुनाव हुआ। भाजपा ने विजय राजभर को उतारा और सपा से सुधाकर सिंह को ही टिकट मिला। हालांकि तकनीकी खामियों के कारण सुधाकर को सपा का सिंबल एलाट नहीं हुआ और वह सपा समर्थित निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और हार का सामना करना पड़ा।

2022 में सपा ने सुधाकर सिंह को घोसी की जगह मधुबन से प्रत्याशी बनाया लेकिन बाद में टिकट काटकर उमेश चंद पाण्डेय को उतार दिया था। इसके बाद सुधाकर सिंह ने बगावती सुर अख्तियार कर लिया था। हालांकि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी और सपा में ही बने रहे। ऐसे में सपा ने भी उन पर एक बार फिर भरोसा जताया और दोबारा मैदान में उतारा है।

सपा-भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल

घोसी उपचुनाव सपा और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव है। सपा के सामने अपनी सीट बरकरार रखने की चुनौती है। सपा को यह साबित करना है कि दारा सिंह दौरान और सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर का साथ छोड़ने के बाद भी वोटरों में उसका प्रभाव अभी बरकरार है। वहीं भाजपा के लिए यह चुनाव लिटमस पेपर टेस्ट से कम नहीं है।

दारा सिंह चौहान को वापस लेने और तमाम अंतरविरोधों के बाद भी ओपी राजभर से हाथ मिलाने के बाद यह पहला चुनाव हो रहा है। दारा सिंह चौहान और ओपी राजभर को भी खुद को साबित करना है। ओपी राजभर का दावा है कि पिछली बार सपा की जीत उनके वोटरों के झुकाव के कारण हुई थी। ऐसे में दारा सिंह चौहान को न सिर्फ यह सीट जीतानी होगी बल्कि भारी अंतर से जीताना होगा। ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान दोनों के लिए यह चुनाव एक तरह से अग्निपरीक्षा होगी।

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