दारा शिकोह, एक साहित्यकार की नजर से

अत्यंत दुख का विषय है कि दारा शिकोह गँगा-जमुनी तहजीब और सर्रवधर्म सम्भाओ की अनूठी मिसाल होने के बावजूद कट्टरपंथी विचारों और सत्ता के लोभी अपने भाई औरंगजेब की साजिशों का ही शिकार हो गया

Update: 2021-10-05 13:29 GMT

दारा शिकोह का जन्म 20 मार्च 1615 ई. को अजमेर में हुआ था जो मुगल सम्राट शाहजहां और मुमताज महल का सबसे बडा पुत्र था और औरगंजेब का भी बडा भाई।

दारा शिकोह एक बेमिसाल शख्सियत था। दाराशिकोह मानवतावादी दृष्टिकोण रखता था। सर्व धर्म समभाव में उसका विश्वास था।सूफीवाद और भारतीय संस्कृति से उसे अथाह प्रेम था लेकिन सत्ता के लोभी औरंगजेब ने उसकी हत्या कर दी थी। 

लेकिन इस महान शख्सियत ने जो साहित्यिक कार्य किये तथा मानवतावादी छाप छोोड़ी है उसे सदैव याद रखा जायेगा।दाराशिकोह को सूफियों मनीषियों और सन्यासियों की संगत पसन्द थी। दाराशिकोह विश्व बंधुत सनातन और इस्लाम धर्म के बीच शान्ति और विभिन्न धर्मों संस्कृति और फिलासफी मेें मेलजोल चाहते थे।

साथ ही एकेश्वरवाद का भी अनुकरण करते थे। दारा शिकोह ने इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों का भी अध्ययन किया तथा वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि सत्य किसी विशेष या चुने हुए धर्म की सम्पत्ति नही हैै, बल्कि सभी धर्मों मे मौजूद है। दाराशिकोह का मानना था कि सभी ज्ञात  का शास्त्रों का  एक वह सामान्य स्रोत होना चाहिए जोकि कुरान में उम्म उल किताब अर्थात किताब की माँ के रूप मेें उललिखित है।

दाराशिकोह ने अपने समय के संस्कृत और सूफी संतो से वेदांत  और इस्लाम के र्दशन का गहन ज्ञान हासिल किया। तथा इन दोनों दर्शनों की समान विचारधारा को दृष्टिगत रखते हुए उसने फारसी और सँसकृत मे अनेक पुस्तकें लिखी।

दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद सिर्र-ए-अकबर के नाम से किया। भागवत गीता का फारसी में अनुवाद किया तथा फारसी मे मजहम उल बहरैन नामक तथा संस्कृत में समुद्र संग नामक बेहतरीन पुस्तकें लिखी। सकीनतुल औलिया सूफी संतो की लिखित पुस्तक तथा कविता संग्रह अकसीर ए आजम भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दाराशिकोह अपने प्रयासों से जिन धार्मिक तथयो मे भिन्नता पाई जाती है। उनमेें समन्वय  स्थापित करके बीच का रास्ता निकालना चाहता था।

अत्यंत दुख का विषय है कि दारा शिकोह गँगा-जमुनी तहजीब और सर्रवधर्म सम्भाओ की अनूठी मिसाल होने के बावजूद कट्टरपंथी विचारों और सत्ता के लोभी अपने भाई औरंगजेब की साजिशों का ही शिकार हो गया।तथा 10 सितंबर1659 को दाराशिकोह की हत्या कर दी गई। और जिस क्रूरता के साथ दारा शिकोह के सर को काटकर लोगों को दिखाया गया और बिना सर के शेष शरीर को हुमायूं के मकबरे मे दफन कर दिया गया । उसे कोई भी मानवतावादी शख्स सही नहीं कह सकता। इतिहासकारो ने दाराशिकोह को सदैव एक दुखद व्यक्ति के रूप मैं चित्रित किया है।

आवश्यकता इस बात की है दारा शिकोह के लिटरेचर और उनके सदविचारों को विश्व भर में आम किया जाये तथा उनकी लिखी पुस्तकों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराया जाये, जिससे लोग इस महान व्यक्तित्व के बारे मे अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सके । और प्रेम व मानवता की इस अनोखी मिसाल से सीख भी हासिल कर सके। 

: शारिक रब्बानी, वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार

नानपारा, बहराईच (उत्तर प्रदेश)

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