पत्रकारिता का घटता स्तर, चिंता का विषय

अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के एक माफिया को गुजरात के साबरमती जेल से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा था। उस समय हमारे देश की मुख्य धारा की मीडिया ने जिस दोयम दर्जे की पत्रकारिता की, निश्चित तौर पर वह चिंतनीय है। टीआरपी की होड़ में हम अपने लेखनी को इतना कमजोर कैसे कर सकते हैं।

Update: 2023-03-29 15:00 GMT

"सत्यपाल सिंह कौशिक"

कभी एक दौर हुआ करता था, जब एक पत्रकार की कलम में इतनी ताकत हुआ करती थी की उसकी लेखनी से बड़े बड़े राजनीतिक गलियारों में हलचल मच जाया करती थी। चाहे राजनेता हो या अधिकारी सभी की चूलें हिल जाया करती थीं। पत्रकार की कलम ने ही बड़े बड़े आंदोलनों को जन्म दिया और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लेकिन एक आज का दौर है, जब हम देख रहे हैं की कैसे पत्रकारिता के नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। ताजा उदाहरण हम देख सकते हैं की अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के एक माफिया को गुजरात के साबरमती जेल से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा था। उस समय हमारे देश की मुख्य धारा की मीडिया ने जिस दोयम दर्जे की पत्रकारिता की, निश्चित तौर पर वह चिंतनीय है। पूरे यात्रा के दौरान वह क्या कर रहा है , वह क्या खाया, क्या पीया, किस चीज का विसर्जन किया सब कुछ बहुत ही रोचक अंदाज में लाइव दिखाया गया। क्या इस चीज की जरूरत थी। शायद नहीं। देश की और भी कई समस्याएं हैं, जैसे- भुखमरी, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि,घटते प्राकृतिक संसाधन इत्यादि। क्या इन जैसे और भी कई ज्वलंत विषयों पर पत्रकारिता नहीं की जा सकती। टीआरपी की होड़ में हम अपने लेखनी को इतना कमजोर कैसे कर सकते हैं। जब पत्रकारिता का अर्थ केवल धन कमाना ही रह जाए तब नैतिक मूल्यों का क्षरण स्वाभाविक है।

आज का युग डिजिटल युग है, जिसकी वजह से समाचारपत्र-पत्रिकाओं और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मो की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और यही कारण भी है कि आज हमको ऐसे ऐसे पत्रकार देखने को मिल रहे हैं, जिनको पत्रकारिता की बिल्कुल भी समझ नहीं है।

किस न्यूज को कैसे दिखाना है, किन परिस्थितियों में दिखाना है, इस बात से उनको कोई मतलब नहीं है। सारे नियम कानून को ताक पर रखकर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की हमारे यहां कमी नहीं है।

सच कह जाए तो आजकल के मीडिया चैनल, केवल खबर ही नहीं दिखाते हैं बल्कि वे अपने खबर को कुछ इस अंदाज में मिर्च मसालों का तड़का लगाकर पेश करते हैं, जैसे कि दर्शक खबर न देख रहा हो वह एक कॉमेडी, एक्शन से भरपूर मनोरंजक फिल्म देख रहा हो।

जब राजनीति से लेकर कार्पोरेट जगत की हस्तियां इन न्यूज चैनलों को चलाएंगी तो हमें केवल खबर ही नहीं बल्कि मिर्च मसालों से भरपूर एक मनोरंजक खबर देखने को मिलेगी, जिसमें वह सभी चीजें रहेंगी जो एक फिल्म में रहती है और तभी इन न्यूज चैनलों की भरपूर कमाई भी होगी।

अगर हमें देश के इस अत्यंत महत्वपूर्ण चौथे स्तंभ को बचाना है और उन्हें निष्पक्ष और सच्ची खबर देने के लिए विवश करना है तो हमें ऐसे खबरों को देखने से बचना चाहिए, जिसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है और जो केवल मनोरंजन के अलावा और कुछ भी नहीं है। जब हम अपने में सुधार लाएंगे तभी पत्रकारिता का स्तर भी सुधरेगा।

एक कवि ने ठीक ही कहा है कि -

"धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगें। कली बेच देंगे, चमन बेच देंगे। कलम के सिपाही अगर सो गए तो, वतन के मसीहा वतन बेच देंगे।" 

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