रुला रहा है, ईशमधु तलवार का जाना

ईशमधु तलवार सक्रियता के पर्याय थे।'नवभारत टाइम्स' (जयपुर संस्करण) में मुख्य संवाददाता व ई टीवी (राजस्थान ) के संपादक रहे ईशमधु तलवार देश में पहली बार शुरू हुए समानांतर साहित्य उत्सव के जनक थे..

Update: 2021-09-17 13:37 GMT

इतनी बेरौनक सुबह पहले कभी नहीं आयी।कलमकार मंच के संयोजक निशान्त की खबर ने सन्निपात की स्थिति में ला दिया।दिग्गज पत्रकार,कथाकार व राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव ईशमधु तलवार का कल रात निधन हो गया।रात दो बजे उन्हें घर पर ही दिल का दौरा पड़ा और उनके पुत्र डॉ अनीश जब अस्पताल ले जा रहे थे तब रास्ते में ही उनका निधन हो गया।आज 11 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

मेरे लिए यह स्तब्धकारी खबर है।कल उनसे दो बार बात हुई।हँसते खिलखिलाते तलवार की आवाज अब तक कानों में गूंज रही है।कल ही आयी किताब ' राजनीतिक कहानियों का सफर' (संपादक:तरसेम गुजराल,प्रकाशक:इंडिया नेटबुक्स) में उनकी कहानी 'जीरो लाइन' को शामिल किया गया था।उसके साथ ही दिसम्बर में आयोजित एक समारोह में हम मिलनेवाले थे -उसको ले कर।अपने मित्र प्रेमचंद गांधी के साथ वे रात ग्यारह बजे तक चर्चारत थे।इस बुरी खबर पर यकीन ही नहीं हो पा रहा है।

ईशमधु तलवार सक्रियता के पर्याय थे।'नवभारत टाइम्स' (जयपुर संस्करण) में मुख्य संवाददाता व ई टीवी (राजस्थान ) के संपादक रहे ईशमधु तलवार देश में पहली बार शुरू हुए समानांतर साहित्य उत्सव के जनक थे जिसके अब तक चार आयोजन हो चुके हैं।'लाल बजरी की सड़क' व 'रिनाला खुर्द' उनकी चर्चित पुस्तकें हैं।संगीतकार दान सिंह को गुमनामी के अंधेरे से निकाल कर चर्चा के केंद्र में लाने का जरूरी काम हिंदी के इस योद्धा पत्रकार ने ही किया था।

सबसे मिलने जुलनेवाला और होंठो पर एक सतत मुस्कान रखनेवाला यह शख्स अचानक रुलाकर चला जायेगा उम्मीद नहीं थी।

आप तो ऐसे नहीं थे तलवार साहब?

इसी 14 अक्टूबर को हम आपका 65 वां जन्मदिन मनानेवाले थे।मेरे आपसे चार दशक से रिश्ते थे।जब आप अलवर में थे और मैं ग्वालियर में।आप 'पलाश' संस्था चलाते थे और मैं 'समानांतर कथाकार मंच' से जुड़ा था।

झन झनाकर टूटी है रिश्तों की वह कड़ी जो बहुत आत्मीय और अपनी थी।कभी नहीं भूल सकता आपकी वह स्निग्ध मुस्कान जो तकलीफ में भी राहत देती थी।

एक दिन में नहीं बनते Ish Madhu Talwar ।

रुंधे गले व भारी मन से अलविदा दोस्त,अलविदा।

आज दैहिक तौर पर तो आप जुदा हो गए पर मन और दिल से आपको भुला पाना नामुमकिन है।

मेरे लिए तो बिलकुल नहीं।

-- हरीश पाठक ( हिंदी साहित्यकार )

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