लाल किले पर मोदी जी के पांच प्रण या प्रपंच

लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने लिए पांच प्रण भी लिए.

Update: 2022-08-15 17:21 GMT

देश के अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से किए गए संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कुछ कहा वह राष्ट्र के नाम संबोधन कम एक राजनैतिक रैली में दिया गया भाषण ज्यादा प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री ने कोई नयी चुनौती या नीति की घोषणा ना कर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर लालकिले की प्राचीर से यह कहकर हमला बोला कि अब लुटेरे नहीं बचेंगे और परिवारवाद के लिए कोई स्थान देश में नहीं होगा। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने पांच प्रण भी लेने की बात कही।

हर स्वतंत्रता दिवस को प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय संबोधन में यह परंपरा रही है कि इसमें देशहित की बातें की जाती हैं और विपक्ष पर राजनीतिक हमलों से बचा जाता है लेकिन देश की गद्दी पर लगातार बैठे रहने को आतुर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसमें भी विपक्ष को घेरने एवं वोट बटोरने के लिए युवाओं के भविष्य पर सरकार का ध्यान होने की बात कही। मोदी जी ने अपने भाषण में पांच प्रण भी दिलाए। मोदी जी ने पहला प्रण किया विकसित भारत का। मोदी जी ने प्रण लेते हुए कहा कि हमें 2047 तक भारत को विकसित बना देना है। मोदी जी का यह प्रण एक लंबी अवधि का एक वादा है जिसे हासिल करने के लिए अभी मोदी सरकार ही तैयार नहीं दिखती क्योंकि विकसित देश के लिए जो करना चाहिए था मोदी सरकार अपने नौ वर्षों के कार्यकाल में विफल साबित हुई। अर्थव्यवस्था बढ़ने की हज़ार बातों के बावजूद आम आदमी की दिक्कतों में इजाफा हुआ है और लोगों को आजीविका चलाने में बड़ी परेशानियां हुई हैं। हां इतना तो हुआ है कि कुछ उद्योपतियों की दौलत में बेतहाशा वृद्धि को ही विकास समझा गया है तो फिर देश 2027 तक भी विकसित हो सकता है।

मोदी जी का दूसरा प्रण किया गया है कि गुलामी के सारे अंश को दूर कर दें चाहे वो जहां भी जिस भी रूप में दिखाई दे रहा हो। अब गुलामी कैसी इस पर भी मोदी जी ने संशय पैदा किया है क्योंकि मोदी जी देश की गुलामी अंग्रेजों से नहीं बल्कि उस समय से मानते रहे हैं जब भारत में मुसलमान शासकों का दौर शुरू हुआ था तो क्या समझा जाए कि मुसलमान और उनकी पहचान वाली किसी भी चीज़ को देश में नहीं रहने दिया जाएगा। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार 11 जून, 2014 को लोकसभा में भाषण दिया था। उस अपने पहले ही भाषण में मोदी ने कहा था, ''12 सौ सालों की ग़ुलामी की मानसिकता परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊंचा व्यक्ति मिले, तो सर ऊंचा करके बात करने की हमारी ताक़त नहीं होती है।'' प्रधानमंत्री की इस बात ने कई सवाल एक साथ खड़े किए। क्या भारत 1200 सालों तक ग़ुलाम था? क्या भारत ब्रिटिश शासन के पहले भी ग़ुलाम था?

मोदी जी तीसरा प्रण है कि अपनी विरासत पर गर्व करना सीखिए। मोदी जी विरासत किसे समझते हैं और जब पूरी भाजपा का कहना यह है कि 2014 से पहले भारत में कुछ था ही नहीं बल्कि 1200 साल की गुलामी थी तो फिर विरासत क्या है। क्या दसवीं सदी से पहला कोई इतिहास जिसके अभिलेखीय प्रमाण भी मौजूद नहीं हैं उसे विरासत बताया जाए जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय संघर्ष हैं, बौद्ध ब्राह्मण संघर्ष हैं, आखिर मोदी जी को यह साफ करना चाहिए कि यह विरासत क्या है। आइये आते हैं चौथे प्रण पर जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फरमाते हैं कि एकता और एकजुटता। 130 करोड़ देशवासियों में ये हो गया तो एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना आसानी से पूरा हो जाएगा। प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि उनकी सरकार और पार्टी में कितने नेता हैं जिन्होंने कभी देश की दूसरी सबसे बड़ी धार्मिक आबादी मुसलमानो को किसी मंच या मौके पर धमकाया ना हो या उनके खिलाफ बहुसंख्यक आबादी को भड़काया ना हो। नफरती तत्वों की एक फौज लेकर सरकार चला रहे हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री ये तो बताएं कि एकता और एकजुटता के लिए उनकी सरकार और पार्टी के पास आखिर कुछ है भी या सिर्फ धोखा है जो समय समय पर सरकार और व्यवस्था के दोहरे मापदंड द्वारा मुसलमानो और अन्य अल्पसंख्यकों को दिया जाता है। प्रधानमंत्री ने खुद भी प्रथम शिक्षा मंत्री और इस्लामी विद्वान मौलाना आज़ाद का नाम लेना बेहतर नहीं समझा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पांचवा प्रण बताया है नागरिकों का कर्तव्य। और इससे पीएम-सीएम भी बाहर नहीं है। हम इस संकल्प के साथ आगे बढ़ें। इस प्रण पर मैं प्रधानमंत्री से एक सवाल कर रहा हूं कि जब आपकी पार्टी व्यवस्था और सरकार के कुछ विभागों ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स द्वारा विभिन्न राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों में तोड़फोड़ अपनी सरकारें बना रहे होते हैं तो प्रधानमंत्री अपना कर्तव्य भूलकर चुप्पी साधे रहते हैं। क्या उस समय यह कर्तव्य याद कराना प्रधानमंत्री भूल जाते हैं। सरकारी विभागों का दुरुपयोग विपक्ष को दबाने के रूप में करना ही भाजपा और प्रधानमंत्री की सरकार का कर्तव्य रह गया है।

प्रधानमंत्री ने इन पांच प्रण के अलावा और बहुत सी बातें कहीं जो वो अक्सर मन की बात और राजनीतिक रैलियों में कहते रहे हैं जैसे युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज जो युवा 20-25 साल के हैं वो जब देश आजादी का 100 साल मना रहा होगा तब 50-55 के होंगे। वो आज मेरे साथ संकल्प लेकर चलें। ये बीच वाला समय उनके लिए ही नहीं देश के लिए स्वर्ण काल होगा। प्रधानमंत्री की इन बातों पर विश्वास करना तब मुश्किल हो जाता है जब वह नौ साल से सरकार चला कर निजीकरण कर सरकारी नौकरियों को खत्म करने तथा अग्निवीर जैसे शिगुफे ला रहे हों। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में महिलाओं और सेना का भी जिक्र किया लेकिन चीन द्वारा डोकलाम इलाके में किए गए कब्जे, चीन द्वारा लगातार भारतीय मार्केट पर छा जाने का जिक्र नहीं किया। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के दर्शन शास्त्र से परिपूर्ण भाषण पर लोग यकीन करने के लिए इसलिए तैयार नहीं हैं क्योंकि पिछले नौ बरस सिर्फ अच्छे दिन आने का इंतजार करने में कट गये लेकिन लोगों की आर्थिक स्थिति बद से बद्तर हुई है। भाजपा और सरकार कोरोना का बहाना और दूसरे देशों से तुलना कर तसल्ली कर लेते हैं और पल्ला झाड़ लेते हैं लेकिन जनता तक जवाब चाहती है कि मुंगेरी लाल के हसीन सपने आखिर कब तक दिखाए जाएंगे। भ्रष्टाचार को लेकर कही गई बातें भी एक मज़ाक लगती हैं क्योंकि मोदी सरकार के कार्याकाल में बैंकों के पैसे लेकर भागने वालों की संख्या भी कम नहीं है और उन पर सरकार की करमनवाजी भी देखी जा सकती है। कुल मिलाकर कहा जाए कि प्रधानमंत्री का भाषण एक प्रपंच था अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अब सिर्फ देखना यह है कि इसमें लोग फंसते कैसे हैं।

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