संजय कुमार सिंह
वैसे तो आज का यह कालम अपने शीर्षक के कारण ही पढ़ने लायक है। शीर्षक है, "मोदी विचार और इसका खामियाजा"। इसमें एक जगह कहा गया है, "... मोदी विचार और इसका खमियाजा। चार राज्यों के चुनाव नतीजे जब तात्कालिक दिलचस्पी का विषय बन गए हैं तो बड़ा सवाल यह बनता है कि केंद्र में भाजपा के बचे हुए तीन साल के कार्यकाल में देश में कैसा राज चलेगा। मोदी सरकार (अनिवार्य रूप से व्यक्ति नरेंद्र मोदी) के शासन चलाने के बुनियादी सिद्धांत स्पष्ट हैं:
सबसे पहले तो, मोदी किसी भी असहमति को बर्दाश्त नहीं करेंगे। असहमति रखने वाले विरोधी नेताओं और विपक्षी दलों को सजा दी जाएगी। कांग्रेस जो सबसे बड़ा निशाना है, के अलावा जो दूसरे दल जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं उनमें जम्मू कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, केरल में माकपा और तमिलनाडु में द्रमुक है। जिन लोगों को छोड़ दिया गया है उनमें ओड़िशा में बीजू जनता दल, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ जब किसी एक पार्टी की सत्ता को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की शक्तियों का इस कदर खुल्लम खुल्ला दुरुपयोग किया गया।
दूसरा, लोकसभा में पाश्विक बहुमत और राज्यसभा में मामूली बहुमत जुटाने की कला का इस्तेमाल उन विधेयकों को पास करने में किया जाएगा जो स्पष्टतौर पर असंवैधानिक हैं, और अन्यायपूर्ण भी। जम्मू कश्मीर को बांटने और दिल्ली सरकार को छोटा करके नगर निगम के रूप में गौरवान्वित कर देने की घटनाएं सबसे ताजा उदाहरण हैं। इससे पहले के उदाहरणों में नागरिकता (संशोधन) कानून और तीन कृषि कानून हैं। और भी उम्मीद की जा सकती है। कुछ कारणों से अदालतों ने थोड़े समय के लिए जो रोक लगाई है उसका मतलब यह है कि ये कानून अपना पूरा असर तो डालेंगे ही, बात तब तक की है जब तक इनका परीक्षण नहीं हो जाता और घोषणा नहीं कर दी जाती है।"
इसमें लोकसभा में भारी भारी बहुमत के लिए "पाश्विक बहुमत" लिखा गया है। यह एक दिलचस्प प्रयोग है। अंग्रेजी में ब्रूट लिखा जाता है और इसके लिए हमारे संपादक, दिवंगत श्री प्रभाष जोशी "रोड रोलर बहुमत" लिखा करते थे। जाहिर है भारी बहुमत का प्रयोग जब तोड़फोड़ या हर चीज को कुचलने के लिए किया जाए तो वह सिर्फ संख्या या भारी नहीं रह जाता है। उसका अर्थ उपयोग के अनुसार ही होगा। और चूंकि बहुमत का उपयोग जानवरों की भीड़ की तरह किया जा रहा है इसलिए उसे पाश्विक बहुमत लिखा जाना अच्छा प्रयोग है। मजा आया।
आज यह कॉलम जनसत्ता में छपा तो है लेकिन जनसत्ता डॉट कॉम में नहीं आया। काफी देर तक इंतजार कर लिया नहीं आया तो संभव है सरकार विरोधी सामग्री का प्रसार सीमित और नियंत्रित करने की किसी योजना या साजिश के कारण नहीं आया हो। वह मेरी चिन्ता का विषय नहीं है। सोशल मीडिया को नियंत्रण में लेने की कोशिशें चल रही रही हैं और क्लिंपिंग या कॉपी पेस्ट करना अगर गलत है तो मैं लिंक भी क्यों शेयर करूं। इसलिए आज कमेंट बॉक्स में आखिरी बार इस कॉलम के पूरे पन्ने का लिंक पेस्ट कर रहा हूं। अगले इतवार से आप पढ़ना चाहें तो सीधे वहीं देखें। मैं ना उसका अनुवाद पोस्ट करूंगा ना लिंक शेयर करूंगा।