मुस्लिम समाज में पुरुष खतना का विज्ञान

पुरूष का खतना करने में उनके गुप्तांग अर्थात लिंग की ऊपरी व बाहरी त्वचा को इस तरह काट कर निकाल दिया जाता है

Update: 2021-10-29 13:25 GMT

शारिक रब्बानी, वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार

 नानपारा, बहराईच ( उत्तर प्रदेश )

 पुरूषों की खतना की प्रथा मुस्लिम समाज के अलावा यहूदी व ईसाई आदि धर्मों मे भी प्रचलित है। क्योंकि पुरूष खतना की शुरूआत ईशदूत अब्राहम से मानी जाती है। इस प्रथा का यहूदी समाज  में विशेष महत्व है परंतु मुस्लिम समाज के लोग भी इस प्रथा का बहुत पाबंदी से पालन करते हैं।

पुरूष खतना लगभग विश्व के सभी देशों में पाया जाता है तथा यह प्रथा मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, अफगानिस्तान, सीरिया, लेबनान, जारडन, फिलीस्तीन, इजरायल, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश  आदि देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है।

साहित्य समाज का दर्पण होता है। अतः इस लेख को इसी नजर से देखा जाना चाहिए न कि किसी विपरीत भाव से। पुरूष का खतना करने में उनके गुप्तांग अर्थात लिंग की ऊपरी व बाहरी त्वचा को इस तरह काट कर निकाल दिया जाता है। कि शिशन मुण्डन जैसा दिखाई देने लगता है और खतना किये हुए लिंग और बिना खतना किये हुए लिंग में स्पष्ट भेद दिखाई देता है।

पुरूष खतना की कोई आयु सीमा नहीं होती है । इसे किसी आयु में भी कराया जा सकता है तथा धार्मिक दृष्टि से मुस्लिम समाज में यह प्रथा अनिवार्य नहीं बल्कि सुन्नत है। परन्तु इस प्रथा पर पाबंदी से अमल किया जाता है। मुस्लिम समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक व समाजिक कारणों से पुरूष खतना किशोरावस्था में किया जाता है, जिसकी देखभाल परिवार की मुस्लिम महिलाओं को भी करनी पड़ती है और इस प्रथा को मुस्लिम समाज की पहचान माना जाता है।

मेडिकल साइंस के अनुसार पुरूषों का खतना सेक्सुअल बीमारियों से बचाव के लिये किया जाता है। परन्तु अनुभवी और जानकर लोगों का मत है कि पुरूष खतना प्रथा सम्भोग में भी सहायक होती है खतना होने के बाद पुरूष की सहवास क्षमता बढ़ जाती है। और सम्भोग की दशा में पुरूष के द्धारा वीर्यपात देर से होता है जिससे स्त्री और पुरूष दोनों को सम्भोग सुख में  आनंद मिलता है।

शायद यही कारण है कि पुरूष खतना पर समाज या समाज के लोगों में, लैगिंग विवाद नहीं है और मुस्लिम समाज के बहुत से लोग इस प्रथा पर अमल करते समय समारोह का भी आयोजन करते हैं।जिसमे परिवार सहित लोग शामिल होते हैं। इसके अलावा विश्व के बहुत से धर्म या समाज जहां पुरूष खतना की प्रथा नहीं है।उनका दृष्टिकोण भी सराहनीय जो इस प्रथा के जरिए पुरूष के अंग विशेष को तब्दील नहीं करना चाहते है और सुखी जीवन भी व्यतीत कर रहे है। 

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