उन्नाव रेप: न्याय की लड़ाई में 30 महिने में पीड़िता परिवार के चार सदस्यों की मौत, वकील कोमा में

उन्नाव रेप पीड़िता वकील की मदद और चाची के हौसले के बूते उसने अपनी लड़ाई जारी रखी। इस दौरान उसे व उसके परिवार को कई बार धमकियां भी मिलीं, लेकिन वह डटी रही।

Update: 2019-12-17 05:36 GMT

उन्नाव। उन्नाव रेप कांड में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 17 दिसंबर को अपना फैसला सुनाते हुए विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार दिया है. आज यानि 17 दिसंबर को कोर्ट में दोषी सेंगर की सजा पर बहस होगी जिसके बाद उनकी सजा पर फैसला आ सकता है. वहीं कोर्ट ने मामले में एक अन्य आरोपी शशि सिंह को बरी कर दिया है. बता दें कि शशि सिंह पर आरोप है कि वो नौकरी दिलाने के बहाने पीड़िता को कुलदीप सेंगर के पास लेकर गई थी, जिसके बाद सेंगर ने पीड़िता से रेप किया था।

विधायक कुलदीप सेंगर से दुष्कर्म की शिकार हुई पीड़ता को न्याय की लड़ाई में तमाम संघर्षों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उसने परिवार के कई सदस्यों को हमेशा के लिए खो दिया। पिता और दादी के बाद उसने उस चाची और मौसी को भी खो दिया, जिन्होंने उसे न्याय की लड़ाई के लिए हौसला दिया। रायबरेली में हुए हादसे में पीड़िता की तो जान बच गई लेकिन, विधायक और उसके गुर्गों की धमकियों के बाद न्याय की लड़ाई में उसका साथ देने वाले वकील अभी भी कोमा में है।

4 जून 2017 को 17 साल की उम्र में किशोरी के साथ दुष्कर्म की घटना हुई थी। किशोरी को अगवा कर अलग-अलग स्थानों पर रखा गया। आठ महीने बाद उसको पुलिस ने खोज लिया था। मां ने थाने में दिए प्रार्थनापत्र में कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा पड़ोस की एक महिला शशि सिंह के जरिए बहाने से घर बुलाकर दुष्कर्म की शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। 11 जून 2017 को पीड़िता ने न्यायालय की शरण ली और 156/3 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन पुलिस ने विवेचना में विधायक और सह आरोपी महिला का नाम हटा दिया।

इसके बावजूद पीड़िता अपनी चाची (रायबरेली हादसे में मृत) के दिए हौसले के सहारे अपनी लड़ाई लड़ती रही। न्याय की इस लड़ाई में उसने अपने पिता को खो दिया। विधायक के छोटे भाई ने उसे बेरहमी से पीटा और उल्टा मुकदमा दर्ज करा दिया। बाद में न्यायिक अभिरक्षा में उनकी मौत हो गई। वह फिर भी नहीं डरी और बाहुबली विधायक के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।

इस लड़ाई में कदम मिलाकर साथ दे रहे चाचा को नवंबर 2018 को 19 साल पुराने एक मुकदमे में न्यायालय से जारी हुए गैर जमानती वारंट पर पुलिस ने जेल भेज दिया। तब से वह जेल में हैं। बेटे के जेल जाने के गम में सीबीआई के गवाहों में शामिल किशोरी की दादी की सदमे में मौत हो गई। पीड़िता फिर भी पीछे नहीं हटी।

वकील की मदद और चाची के हौसले के बूते उसने अपनी लड़ाई जारी रखी। इस दौरान उसे व उसके परिवार को कई बार धमकियां भी मिलीं, लेकिन वह डटी रही। जब वह अधिवक्ता के साथ उन्हीं की कार से रायबरेली जेल में बंद चाचा से मिलने जा रही थी तभी थाना गुरुबक्शगंज में रहस्यमय सड़क हादसे में अपनी चाची और मौसी को भी खो दिया। हादसे में घायल उसके वकील की भी हालत गंभीर है।

  

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