जन्मदिन विशेष : रामधारी सिंह दिनकर और रश्मिरथी

रश्मिरथी में नायक है,सर्गबद्ध है इतिहास पुराण सम्मत धर्म काम मोक्ष की व्यंजना भी है।रश्मिरथी का नामकरण प्रधान नायक कर्ण के आधार पर किया गया है जो महाकाव्य की शर्त को पूरा करता है।रस की दृष्टि से वीर रस की प्रधानता है

Update: 2021-09-23 10:50 GMT

प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर को हम सब वीर रस के कवि के रूप में याद करते हैं। रश्मि रथी जैसे काव्य लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर का आज जन्म दिवस है आइए आज उनके प्रसिद्ध काव्य रश्मिरथी पर नजर डालते हैं -

प्रबंधकाव्य के अंतर्गत रश्मिरथी खंडकाव्य है या महाकाव्य, इसको समझने के लिए पहले महाकाव्य की परिभाषा को समझना जरूरी है।

महाकाव्य को सर्गबद्ध होना चाहिए।महाकाव्य का कोई एक नायक होता है।महाकाव्य में श्रृंगार,वीर अथवा किसी एक रस की प्रधानता अवश्य होनी चाहिए। उसमें नाटक की सारी संधियां होनी चाहिए। एक सर्ग की रचना एक ही छंद में होनी चाहिए।सर्गों की संख्या आठ होनी चाहिए।प्रत्येक सर्ग का एक स्वतंत्र शीर्षक हो सकता है।

परम्परागत सामाजिक संस्कारों की व्यापक अभिव्यक्ति और एक युग विशेष के सामाजिक जीवन तथा विचारधारा का चित्रण के आधार पर क्या रश्मिरथी को महाकाव्य कहा जाना चाहिए?

रश्मिरथी में नायक है,सर्गबद्ध है इतिहास पुराण सम्मत धर्म काम मोक्ष की व्यंजना भी है।रश्मिरथी का नामकरण प्रधान नायक कर्ण के आधार पर किया गया है जो महाकाव्य की शर्त को पूरा करता है।रस की दृष्टि से वीर रस की प्रधानता है। हालांकि प्रारम्भ में मंगल चारण नहीं है लेकिन वस्तु संकेत का नियोजन है-

जय हो जग में जले जहां भी नमन पुनीत अनल को..

रश्मिरथी में प्रकृति और मानव जीवन का भी चित्रण है।

बैठे हुए सुखद आतप में मृग रोमंथन करते हैं

वन के जीव विवर से बाहर हो विश्रब्ध विचरते हैं

महाकाव्य के इन लक्षणों को पूरा करने के बावजूद रश्मिरथी में महाकाव्य की कई शर्तों को पूरा नहीं किया गया है। इसमें सर्गों की संख्या सात है तथा नाटक की सारी संधियां इसमें मौजूद नहीं हैं। घटनाओं के अनुकूल सर्गों के नामकरण का महाकाव्योचित विधान भी इसमें नहीं है। तीसरे, चौथे और पंचम सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन का नियम निर्वाह भी नहीं हुआ है। इसके अलावा रविन्द्र नाथ के अनुसार महाकाव्य में महदनुष्ठान, महच्चरित्र , युग जीवन की अभिव्यक्ति और उदात्त शैली भी प्रमुख अवयव हैं। रश्मिरथी में कोई महत उद्देश्य भी नहीं है। किसी उदात्त आशय ,युग प्रवर्तक संघर्ष अथवा समाज की किसी स्थिति की जगह कर्ण के चरित्र को उद्धरित करना ही मुख्य उद्देश्य है। रामचिरत मानस और महाभारत आदि की तरह इसमें घटनाओं की विपुलता नहीं है। ये रश्मिरथी की बहुत बड़ी त्रुटि है।इसके अलावा पूरे छंद में लेक्चरबाजी भी बहुत है।

- सिद्धार्थ वल्लभ

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