गया में इस साल भी पितृपक्ष मेले का नहीं होगा आयोजन, जानें गया में पिंडदान की पौराणिक कथा

Update: 2021-09-14 11:38 GMT

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अति महत्वपूर्ण स्थान है. पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ होता है और यह आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. यह 20 सितंबर से 6 अक्टूबर 2021 तक है।

इन दिनों लोग अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध सम्पन्न कराते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर इन दिनों पितरों का श्राद्ध किया जाए तो पिंडदान सीधे पूर्वजों तक पहुंचता है। वहीं, एक मान्यता यह भी है कि अगर बिहार के गया में पूर्वजों का पिंडदान किया जाए तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में गया में पिंडदान का अलग ही महत्व है।

बिहार में कोरोना महामारी को देखते हुए बड़ा फैसला लिया गया है। गया में होने वाले पितृपक्ष मेले के आयोजन पर प्रशासन ने इस बार भी रोक लगा दी है। इसके साथ ही प्रशासन ने कोरोना के खतरे को देखते हुए दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को इससे परहेज करने की अपील की है। 

गया जिला प्रशासन ने बाहर से आने वाले लोगों के लिए कोरोना टेस्ट अनिवार्य कर दिया है। साथ ही लोगों के बड़े समूह में आने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। हालांकि, जो पिंडदानी सीमित संख्या में आ रहे हैं, उन्हें पिंडदान की अनुमति दी गई है। प्रशासन ने कहा है कि जिन्होंने कोरोना का टीका नहीं लगवाया है, उनका टीकाकरण भी किया जाएगा।

प्रशासन के इस फैसले से पंडा समाज और लोगों में संतुष्टि भी देखी जा रही है। उनका कहना है कि सीमित संख्या में आ रहे लोगों के पिंडदान के वक्त कोरोना प्रोटोकॉल का पूरा ध्यान रखा जाएगा। गृह विभाग ने सभी को यह दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं।

यह लगातार दूसरी बार है जब कोरोना के चलते इस मेले का आयोजन रद्द किया गया है। गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पितरों के आशीर्वाद के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि गयाजी में साक्षात भगवान विष्णु का दर्शन करके मानव सभी ऋणों से मुक्त हो जाता है। 

गया में पिंडदान की पौराणिक कथा

जब ब्रह्माजी सृष्टि की रचना कर रहे थे तब गलती से उन्होंने असुर कुल में एक असुर की रचना कर दी। इसका नाम 'गया' रखा गया। वह असुर कुल में जरूर था लेकिन उसमें असुरों की कोई प्रवृत्ति नहीं थी। गया हमेशा ही देवताओं की उपासना में लगा रहता था। एक दिन गया ने सोचा कि उसका सम्मान कभी नहीं किया जाएगा शायद इसका कारण यह है कि वो असुर कुल में पैदा हुआ है। ऐसे में क्यों न वो इतना पुण्य कमा लें कि उसे स्वर्ग मिल जाए। इसी कामना में वो विष्णु जी की उपासना में लग गया।

विष्णु जी उसकी प्रवृत्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उसने उसे वरदान दिया। उन्होंने गया को वरदान दिया कि जो कोई भी उसे देखेगा मात्र उससे ही व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाएंगे। यह वरदान पाकर वो लोगों के पाप घूम-घूम कर दूर करने लगा। चाहें कोई व्यक्ति कितना भी पापी क्यों न हो अगर एक बार उस पर गयासुर की नजर पड़ जाती तो उससे ही व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते।

यह देख यमराज काफी चिंतित हो गए। यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि गयासुर उनका सारा विधान खराब कर रहा है। क्योंकि उन्होंने सभी को उनके कर्मों के अनुसार ही फल भोगने की व्यवस्था की है। यह सुन ब्रह्माजी ने एक योजना बनाई। उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारी पीठ बहुत पवित्र है। ऐसे में मैं और समस्त देवगण तुम्हारी पीठ पर यज्ञ करेंगे। इससे गयासुर अचल नहीं हुआ।

गयासुर की पीठ पर स्वंय विष्णु जी आ बैठे। उनका मान रखते हुए उसने अचल होने का फैसला लिया। उन्होंने विष्णु जी से वरदान मांगा कि उसे एक शिला बना दिया जाए और यहीं स्थापित कर दिया जाए। यही नहीं, गयासुर ने यह भी मांगा कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें। मृत्यु के बाद यही स्थान धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बनेगा। यह देख विष्णु जी काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने गयासुर को आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि किए जाएंगे और इससे मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होगी।




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