मिस्टर सुशासन की नई सोशल इंजीनियरिंग क्या गुल खिलाएगी ?

Update: 2022-02-24 10:50 GMT

-मनोज नैय्यर

चुनाव रणनीतिकार प्राशंत किशोर नीतिश बाबू से क्या मिले। राजनीति ने करवट बदल ली। इस राजनीतिक करवट से किसे लाभ होगा, राजनितिक विशलेषक उधेड-बुन में जुट गए हैं। यूपी चुनाव के बीचो-बीच आखिर क्या हो गया कि बिहार के सीएम को पीके की याद आई। जनकारों की मानी जाए तो नीतिश बाबू का बीजेपी नीत एनडीए से मोहभंग हो गया है। वह इसलिए क्योंकि बीजेपी के साथ रहते मिस्टर सुशासन के सपने डावांडोल हो रहे हैं। जेपी आंदोलन से पनपे मिस्टर सुशासन करीब साढ 4 दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं। बेहद पक भी चुकें हैं। दलगत राजनीति से उठ कर ऐसी रिटायरमेंट चाहते हैं कि सियासी इज्जत ताउम्र मिलती रहे। मुख्यमंत्री के ठाठ वाली 4-5 पारियां वें आयाम न दिला सकी। जो, आयाम राष्ट्रपित भवन दिला सकता है।

लिहाजा, मिस्टर सुशासन 5 बरस के लिए राष्ट्रपति भवन की मेहमान-नवाजी चाहते हैं। बीजेपी नीत एनडीए ने खुद को श्रेष्ठ सोशल इंजीनियर मानने वाले मिस्टर सुशासन से ये वादा भी 2016-17 में किया था। लेकिन यूपी चुनाव में जिस तरह से बीजेपी की भद पिट रही है। उससे मिस्टर सुशासन को लगता है कि वक्त की पुकार नई सोशल इंजीनियरिंग की है। बीजेपी यूपी चुनाव में वह जुगाड कर नहीं पा रही। जिससे मिस्टर सुशासन आसानी से राष्ट्रपति भवन तक पहुंच सके। इसलिए प्रशांत किशोर को याद किया। क्योंकि विपक्ष के सहयोग के बिना ख्वाब अधूरा रह सकता है। इसलिए कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, टीएमसी और समाजवादी पार्टी को पटाने की बढी जिम्मेदार प्रशांत किशोर की सौंप दी। मुसीबत ये है कि रास्ते का पत्थर कोई और नहीं वहीं साथी हैं जिनकी छत्रछाया में वोटरों के ना चाहने के बावजूद सीएम की गद्दी पर विराजमान हैं। साथी आपने रहनुमा के करीब 97 वर्ष को एजेंडे को हकीकत में बदलने के लिए खुद मिस्टर प्रेसीडेंट बनने की ताक में हैं।

एक, इससे 2024 के लिए नया चेहरा सामने आ जाएगा। दूसरा, आसमां छू रही मंहगाई, जीवन को आईसीयू में ले चुकी बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी के झंझटों से छुटकारा। ऐसे में मिस्टर सुशासन की राह मुश्किल। लेकिन मिस्टर सुशासन ऐसे ही सोशल इंजीनियर थोडे हैं। वें ऐसा दांव खेलना चाहते हैं कि चित भी मेरी और पट भी मेरा। देखते हैं, 10 मार्च के बाद या उससे पहले ही क्या गुल खिलाती है, मिस्टर सुशासन की नई सोशल इंजीनियरिंग।

-मनोज नैय्यर लेखक, 'वंचितों का भारत' के संपादक हैं।

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