संजय कुमार सिंह
इसमें कोई दो राय नहीं है कि रोजगार के मौके छोटे उद्योगों, कारोबारों और स्वरोजगार में हैं। इस सरकार ने नोटबंदी और फिर जीएसटी से उनका सत्यानाश किया और अन्य मामलों की तरह एफडीआई में भी यू टर्न लिया। एफडीआई से कितने पैसे आए, कितने कारखाने लगे यह तो राम जाने पर पांच साल में पांच ऑटोमोबाइल कारखाने बंद हो गए। मतलब नौकरियां यहां भी नहीं। पर सरकार समर्थकों को समझ नहीं आ रहा है।
एनजीओ-विदेशी चंदे से सेवा लोकोपकार के साथ कुछ लोगों को काम मिल सकता है। पर सरकार को उसमें देश-विरोध दिखता है और विदेशी चंदे पर भी पाबंदी। दरअसल विदेशी चंदे और छोटे धंधे से घर चलाने वालों पर नियंत्रण मुश्किल होता है और वह सरकार के खिलाफ बोल सकता है। इस सरकार के लिए यदी देशद्रोह है। बाकी देसी पैसों पर नियंत्रण के लिए पीएम केयर्स। करोड़ों रुपये का दान लेकर उसपर ब्याज कमाया जा रहा है।
यहां सेवा, सेवा करने वाले और सेवा पाने वाले सबका नुकसान, फिर भी पीएम महान। फिर लोग कहते हैं रोजगार नहीं हैं। अरे, सरकार तो रोजगार के मौके खत्म कर रही है आप रोजगार की उम्मीद कैसे करते हैं। और मामला यहीं नहीं है, प्रदूषण के कारण कारखाना बंद है। सरकार उसे खुलवा नहीं सकती जबकि प्रदूषण दिल्ली में ज्यादा हैं। दिल्ली में आतिशबाजी रुक सकती है पराली नहीं। वहां कारखाना बंद है, प्रदूषण कम नहीं हुआ।
सिगरेट तंबाकू की बिक्री कम हो इसके लिए पाने बेचने वालों के लिए लाइसेंस जरूरी किया जा सकता है लेकिन देश में तंबाकू पर टैक्स डब्ल्यूएचओ की सिफारिश से काफी कम है। डबल इंजन वाली एक सरकार शराब रोकने में ही व्यस्त है। रोक नहीं पा रही है पर टैक्स बढ़ाकर कमाएगी नहीं। उसके लिए पेट्रोल पर 50 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स ठीक है। और बात सिर्फ बेरोजगारी की नहीं है। बेरोजगारों के लिए महंगाई बढ़ाने की भी है।
लेकिन विरोध बुर्के का हो रहा है और खुशी इस बात की है कि अनुच्छेद 370 खत्म हो गया। गाएं गौशाला में मर रही हैं।